Sunil Gavaskar’s Melbourne Test controversy: सुनील गावस्कर कई बार यह बात कह चुके हैं कि मेलबर्न टेस्ट में उन्होंने जो किया वो उन्हें नहीं करना चाहिए था। उनकी नाराज़गी जायज़ थी लेकिन उस नाराज़गी में लिया गया फैसला गलत था। गावस्कर यह भी मानते हैं कि अगर आज के दौर में उन्होंने वैसा क़दम उठाया होता तो निश्चित तौर पर उन्हें ‘बैन’ जैसी कड़ी सजा मिली होती। लेकिन सच यह भी है कि उस नाराज़गी के पहले की कहानी को समझना होगा।
उस सीरीज़ में सुनील गावस्कर से रन नहीं बन रहे थे। सिडनी में पहले टेस्ट की पहली पारी में वो बगैर खाता खोले आउट हो गए थे। दूसरी पारी में बड़ी मुश्किल से वो 10 रन बना पाए थे।
एडीलेड में उन्होंने पहली पारी में 23 और दूसरी पारी में 5 रन बनाए थे। यहाँ तक कि जिस मेलबर्न टेस्ट का ये वाक़या है, उसमें भी पहली पारी में गावस्कर के बल्ले से सिर्फ 10 रन निकले थे। यानी पाँच पारियों में कुल 48 रन सुनील गावस्कर के खाते में थे। उनके ऊपर रन बनाने का दबाव बढ़ता जा रहा था।
ऐसे में मेलबर्न टेस्ट की दूसरी पारी में उन्हें अच्छी शुरुआत मिली। उनकी निगाहें अच्छी तरह सध चुकी थीं। पहली पारी में ऑस्ट्रेलिया को क़रीब पौने दो सौ रनों की बढ़त मिली थी, जिसे बिना कोई विकेट खोए उतारने के इरादे से गावस्कर बहुत ही सधी हुई पारी खेल रहे थे। उन्होंने अपना अर्धशतक भी पूरा कर लिया था।
मैच में सबकुछ सही चल रहा था। सिवाय उस गेंद पर हुए फैसले के, जो थोड़ी नीचे रह गई थी। डेनिस लिली की उस ‘इनकटर’ पर गावस्कर का बल्ला पहले लगा, ‘पैड’ बाद में। डेनिल लिली और बल्लेबाज़ के क़रीब खड़े फील्डर्स ने अपील की। ऑस्ट्रेलिया के ही रेक्स व्हाइटहेड अंपायरिंग कर रहे थे। उन्होंने बगैर किसी देरी के अँगुली उठा दी। गावस्कर ने क्रीज़ पर खड़े होकर अपने बल्ले से अपने पैड को मारा यह समझाने के लिए कि गेंद पहले उनके बल्ले पर लगी है।
लेकिन व्हाइटहेड फैसला दे चुके थे। दिलचस्प बात यह है कि व्हाइटहेड का बतौर अंपायर वह तीसरा ही टेस्ट मैच था। गावस्कर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उस वक्त वो 70 रन जोड़ चुके थे। कमाल की बल्लेबाज़ी कर रहे थे। शतक से 30 रन दूर थे, लेकिन जिस आत्मविश्वास से वो बल्लेबाज़ी कर रहे थे, यह तय लग रहा था कि सिडनी और एडीलेड की नाकामी को वो मेलबर्न में शतक के साथ दूर करेंगे। गावस्कर गुस्से में बड़बड़ाते हुए पविलियन की तरफ़ जाने लगे।
बात अब भी नहीं बिगड़ती, अगर पविलियन के रास्ते में जाते वक्त उन्हें एक ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी ने अपशब्द न कहे होते। इससे पहले डेनिस लिली भी गावस्कर को क्रीज़ से जाते वक्त यह कहकर नाराज़ कर चुके थे कि गेंद ने पहले ‘पैड’ को छुआ था।
गावस्कर का खून गर्म हो गया। वो बीच रास्ते से वापस लौटे। उन्होंने चेतन चौहान के पास आकर उनसे भी पूछा कि क्या वो आउट थे? चेतन ने साफ-साफ कहा कि कि वो आउट नहीं थे। इतना सुनने के बाद तो सुनील गावस्कर ने चेतन चौहान से भी मैदान से बाहर चलने को कहा। चेतन चौहान तेज़ क़दमों से अपने कप्तान के साथ आगे-आगे चलने लगे। चेतन भी इस बात को समझ रहे थे कि गावस्कर के साथ गलत हुआ है। वो अपने कप्तान के साथ थे।
अभी पविलियन थोड़ा दूर था, जब चेतन के कान में आवाज़ आई। अंपायर रेक्स व्हाइटहेड ने ज़ोर से कहा कि इस तरह मैदान छोड़ने का मतलब होगा कि भारत ने इस मैच में हार मान ली है। गावस्कर ने इस बात को सुना या नहीं, नहीं पता लेकिन चेतन चौहान के क़दम धीमे पड़ गए। उन्हें समझ आ गया कि अगर वो एक बार मैदान से बाहर चले गए तो बात बहुत गंभीर हो जाएगी। कुछ ऐसा हो जाएगा जो क्रिकेट के खेल में कभी नहीं हुआ था।
इधर ड्रेसिंग रूम में भी उथल-पुथल मच चुकी थी। सैयद किरमानी ने दौरे पर गए टीम मैनेजर विंग कमांडर शाहिद दुर्रानी को बीच बचाव के लिए भेजा। मेलबर्न के मैदान में ड्रेसिंग रूम तक जाने के लिए अच्छी खासी सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। किरमानी ने लगभग धक्का देते हुए दुर्रानी को पविलियन से बाहर भेजा।
चेतन चौहान के क़दम धीमे थे ही, उनके कान में अंपायर के शब्द गूँज रहे थे तभी उनकी नज़र मैनेजर शाहिद दुर्रानी पर गई जिन्होंने हाथ दिखाकर उन्हें मैदान के भीतर ही रहने का इशारा किया। इसके बाद चेतन चौहान जहाँ तक पहुँचे थे, वहीं रुक गए। उन्हें दिखाई दिया कि दिलीप वेंगसरकर तेज़ क़दमों से बाहर आ रहे हैं।
यानी अब यह बात साफ हो चुकी थी कि भारतीय टीम मैनेजमेंट ने मैच को जारी रखने का फैसला किया है। कुछ ही सेकंड में दिलीप वेंगसरकर मैदान के भीतर आ गए। उसके बाद वेंगसरकर और चेतन चौहान ने क्रीज़ सँभाला और बल्लेबाज़ी शुरू की। थोड़ी ही देर में चेतन चौहान 85 रन बनाकर आउट हो गए।
दिलचस्प बात यह है कि उस टेस्ट मैच में पहली पारी में क़रीब पौने दो सौ रनों की बढ़त लेने के बाद भी ऑस्ट्रेलिया वह मैच हार गया। भारत ने दूसरी पारी में 324 रन बनाए थे और कंगारुओं को चौथी पारी में जीत के लिए 143 रन बनाने थे। कपिल देव की घातक गेंदबाज़ी के आगे कोई भी टिक नहीं पाया और भारत ने उस सीरीज़ में पहली जीत दर्ज की थी।
चेतन चौहान आज भी उस मैच को याद करके कहते हैं कि अगर अंपायर की आवाज़ उनके कान में नहीं पड़ी होती तो वो गावस्कर से पहले ही मैदान से बाहर पहुँच चुके होते और उसके बाद जो होता वह बहुत बड़ी घटना होती।