The Story of India’s 1996 England Tour: 1996 का वो इंग्लैंड दौरा कई मायनों में बड़ा अहम था। इसी दौरे में नवजोत सिंह सिद्धू यह कहकर वापस आए थे कि वो अपनी बेइज़्ज़ती बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। उनका आरोप था कि कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन उन्हें लगातार नीचा दिखा रहे थे। कप्तान अजहर और कोच संदीप पाटिल ने ऐसी किसी बात से इंकार किया था। खैर, इन्हीं परिस्थितियों के बीच टेस्ट सीरीज़ शुरू हुई।
लॉर्ड्स टेस्ट की ओर: युवा सितारों का उदय
सीरीज़ के पहले मैच में इंग्लैंड ने भारत को 8 विकेट से हरा दिया था। इसी दौरान डर्बीशैर के ख़िलाफ़ एक साइड गेम खेला गया था। उसी मैच में सौरव गांगुली को बता दिया गया था कि वो अगला टेस्ट मैच यानी लॉर्ड्स में प्लेइंग-11 का हिस्सा होंगे। ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि डर्बीशैर के ख़िलाफ़ सौरव गांगुली ने 64 रनों की अच्छी पारी खेली थी। लेकिन राहुल अब भी ‘स्टैंडबॉय’ में थे। उन्हें यह नहीं पता था कि लॉर्ड्स में भी उन्हें टेस्ट करियर की शुरुआत करने का मौक़ा मिलेगा
या नहीं। मामला यहाँ फंसा हुआ था कि संजय मांजरेकर के पैर में तकलीफ थी। टीम मैनेजमेंट ने फैसला किया था कि अगर संजय मांजरेकर फिट नहीं होते हैं तो राहुल द्रविड़ को मौक़ा दिया जाएगा। मैच की सुबह तक तस्वीर साफ नहीं हुई थी। मैच की सुबह संजय मांजरेकर फिटनेस टेस्ट नहीं पास कर पाए। संदीप पाटिल ने टॉस से क़रीब 10-12 मिनट पहले जाकर राहुल द्रविड़ को बताया कि वो टीम में ‘इन’ हैं यानी लॉर्ड्स से वो अपने टेस्ट करियर की शुरुआत करेंगे। राहुल का चेहरा खिल गया। टेस्ट करियर की शुरुआत लॉर्ड्स से हो, इससे अच्छी और बड़ी बात क्या हो सकती है।

वेंकटेश प्रसाद अपनी घरेलू टीम के साथी राहुल द्रविड़ को बधाई देने गए। लोगों के लिए वो बड़ा यादगार लम्हा था। राहुल द्रविड़ की नज़र ड्रेसिंग रूम में लगे उस बोर्ड पर गई, जिस पर तमाम विदेशी खिलाड़ियों के नाम लिखे हुए थे। ये उन खिलाड़ियों के नाम थे जिन्होंने या तो लॉर्ड्स में शतक बनाया था या फिर 5 विकेट झटके थे। राहुल द्रविड़ ने वेंकटेश प्रसाद से कहा कि इस मैच में आप अपना नाम गेंदबाज़ों वाले बोर्ड पर लिखवाओ, मैं बल्लेबाज़ों वाले बोर्ड पर लिखवाऊँगा। यानी दोनों खिलाड़ियों में यह वादा हो गया कि वेंकटेश प्रसाद 5 विकेट लेंगे और राहुल द्रविड़ शतक जमाएँगे।
मैच शुरू हुआ। भारत ने टॉस जीता लेकिन पहले गेंदबाज़ी का फैसला किया। इंग्लैंड की टीम ने पहली पारी में जैक रसेल के शतक की बदौलत 344 रन बनाए। वेंकटेश प्रसाद ने पहली पारी में भारत के लिए 5 विकेट लिए यानी उन्होंने राहुल द्रविड़ से किया अपना वादा पूरा कर दिया था। अब बारी राहुल द्रविड़ की थी। भारत की बल्लेबाज़ी शुरू हुई। साइड मैचों में अच्छा प्रदर्शन कर रहे विक्रम राठौर जल्दी आउट हो गए। इसके बाद के बल्लेबाज़ों ने भी कोई बड़ा स्कोर नहीं किया।
उस मैच में कप्तान अजहरुद्दीन ने राहुल द्रविड़ से भी पहले अजय जडेजा को बल्लेबाज़ी करने के लिए भेजा था। खैर जडेजा ज़्यादा देर क्रीज़ पर नहीं टिके और 10 रन के स्कोर पर जब वो आउट हुए, तब मैदान में आए राहुल द्रविड़। राहुल द्रविड़ ने क्रीज़ सँभाली। उनके दिमाग में सचिन तेंडुलकर की कही सिर्फ़ एक बात चल रही थी कि क्रीज़ पर सबसे पहले 15 मिनट का वक्त बिताना उसके बाद सब ठीक हो जाएगा। इसी बीच सौरव गांगुली ने अपने पहले टेस्ट मैच में शतक लगाया। शानदार शतक। उस शतक में 17 चौके थे। तीसरे दिन का खेल ख़त्म होने तक राहुल द्रविड़ भी सेट हो चुके थे। उन्होंने भी अपना अर्धशतक पूरा कर लिया था।
अब मैच का चौथा दिन था। राहुल द्रविड़ को वेंकटेश प्रसाद से किया अपना वादा पूरा करना था। राहुल के साथ क्रीज़ के दूसरे छोर पर निचले क्रम के बल्लेबाज़ थे लेकिन राहुल ने बखूबी दिन की शुरुआत की। सँभलकर खेलते-खेलते वो 75 रनों के पार पहुँच गए। हाँ, बीच में एक वक्त आया, जब वो 79 रन के स्कोर पर अटक गए। उन्हें क़रीब आधा घंटा लगा 79 के स्कोर से आगे बढ़ने में। खैर, यह अड़चन भी दूर हुई और राहुल द्रविड़ अपने शतक से सिर्फ 5 रन की दूरी पर थे।
जब यह लग रहा था कि अब बस शतक पूरा होने ही वाला है, क्रिस लुइस की गेंद द्रविड़ के बल्ले को छूती हुई सीधे विकेटकीपर के दस्ताने में चली गई। द्रविड़ ने अंपायर की अँगुली उठने तक का इंतज़ार नहीं किया और तुरंत पविलियन के रास्ते पर चल दिए। संयोग की बात यह थी कि जब वो पविलियन के रास्ते पर थे, तो अंदर से मैदान पर आने वाले खिलाड़ी थे वेंकटेश प्रसाद। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और शायद एक ही शब्द दोनों के दिमाग़ में आया-अफसोस । हालाँकि द्रविड़ की इस पारी ने उन्हें टेस्ट टीम में जगह दिला दी।
सुनील जोशी और आमलेट की कहानी
इसी दौरे का एक और दिलचस्प क़िस्सा है: भारतीय स्पिनर सुनील जोशी पूरी तरह से शाकाहारी थे। जिसका नुकसान ये था कि इंग्लैंड के दौरे पर उन्हें हर रोज़ लगभग भूखे ही रहना पड़ता था। राहुल द्रविड़ ने उन्हें समझाया कि ‘आमलेट’ खाने में कोई हर्ज नहीं है। धीरे-धीरे सुनील जोशी को आमलेट इतना अच्छा लगने लगा कि फिर वो पूरे दिन आमलेट ही खाते रहते थे। सुनील जोशी को ठंड भी बहुत लगती थी।
ससेक्स के ख़िलाफ़ एक प्रैक्टिस मैच में वो ‘गली’ में फील्डिंग कर रहे थे। उनके हाथ जेब के अंदर थे। बल्लेबाज़ का शॉट सीधा उनके पास पहुँचा, लेकिन जब तक वो जेब से हाथ बाहर निकालकर कैच पकड़ते, तब तक देर हो चुकी थी। इंग्लैंड के ख़िलाफ़ वह मैच इसलिए भी याद रखा जाता है क्योंकि वो महान अंपायर डिकी बर्ड का भी आख़िरी मैच था।